माँ
लबों
पर उसके कभी बद-दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी ख़फा नहीं होती ।
इस तरह मेरे ग़ुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है, तो रो देती है ।
मैंने
रोते हुए पोंछा था किसी दिन आँसू,
मुद्दतों
माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना ।
अभी
ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नही होगा,
मैं
जब घर से निकलता हूँ, दुआ भी साथ चलती है ।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है ।
ऐ अन्धेरे देख ले, तेरा मुँह काला हो गया,
माँ ने आँखे खोल दी, घर में उजाला हो गया ।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिशता हो जाँऊ,
माँ से इस तरह लिपटुँ, कि बच्चा हो जाँऊ ।
मुन्नवर माँ के आगे, यूँ कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।